Thursday, September 16, 2010

फ़रिश्ते कह रहे हैं आदमी से कुछ नहीं होता ...


[ भूमिका ]
निराशा बहुत भयानक चीज है और उतनी ही खतरनाक है आशा ! दोनों ही स्थितियों में हम धरातल छोड़ देते हैं और उड़ना हमने अब तक सीखा नहीं है ! कल्पना में खोकर उड़ने की कोशिश , फिर वही हताशा, कुंठा और संशय का दुष्चक्र ! ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारी कल्पना ही खोखली हैं !
हम एक बहुत ही मुश्किल दौर से गुज़र रहे हैं, ये दौर सनसनी का है ! सुनते-सुनते, पढ़ते -पढ़ते और यही सब देखते -देखते हम भी सनसनी के पुजारी हो गए हैं ! एक हल्की से चिंगारी मन में कौंधी और हम दुनिया में क्रान्ति लाने के सपने बुनने लगते हैं, सोच के धरातल में कुलांचे मारने लगते हैं ! कभी अगर निराशा का हल्का सा कुहासा नज़र आया तो मन मार बैठते हैं ! बहुत कुछ सोचने लगते हैं ! ये दौर शेख - चिल्लियों का है , जहां काम कम हो रहा है और दिमाग को कल्पना के बोझ से दबाया जा रहा है ! हम गुनगुनाना कब का भूल गए लेकिन गीत-संगीत की विवेचना ज़रूर कर रहे हैं !

[ प्रस्तावना ]
हम जो कर रहे हैं वो बिना सोचे समझे किये जा रहे हैं ! कूपमंडूकता के आक्षेप से बचने के लिए मत्स्यागर की मछली बनते जा रहे हैं , शीशे की दीवारों में क़ैद ! शीशे के आर-पार देख तो रहे हैं , दुनिया की खबर तो है , अंदाज़ा है कि दुनिया बहुत बड़ी है लेकिन कितने विवश हैं हम ... हम शीशे के जार में ही घूम रहे हैं, दुनिया की बात कर रहे हैं, निकलने का सोच भी नहीं रहे ... हमने अपने बंधन खुद बाँध लिए, अब क्रान्ति की कोई बात भी नहीं करता ! हम डरे हुए हैं ! बाहर गए तो कोई बड़ी मछली हमला न कर दे, बाहर गए तो फिश-फ़ूड कौन देगा हमे ! हम अपना कम्फर्ट ज़ोन छोड़ना ही नहीं चाहते , बस बात किये जा रहे हैं !और झूठे आदर्श पकडे हुए दौड़े जा रहे हैं अपने जार में - सीईओ बनेंगे, कार खरीदेंगे, घर खरीदेंगे ... प्रगती के जिन झूठे मानदंडों को आधार मानकर हम दौड़े जा रहे हैं ...लेकिन प्रगति बहुत खोखली है .. तुम्हे एक जार से उठाकर दुसरे बड़े जार में डाल देंगे, जहां पानी ज्यादा होगा, खाना ज्यदा होगा , मछलियाँ रंग-बिरंगी होंगी ..बस और कुछ नहीं !

शुरू में सब अच्चा लगेगा , तुम खुद को कामयाब मान बैठोगे एक पल के लिए, दोस्तों को महंगी पार्टी दे दोगे, नाचोगे, गाओगे और पुराने 'ज़ार' की पीड़ा को भूल जाओगे ! लेकिन अगले पल तुम्हे अहसास होगा कि तुम्हारी प्रगति खोखली है , ये रंग-बिरंगी मछलियाँ कितनी ही खुशनुमा क्यों न दिखाई दे लेकिन हकीकत में ये बीमार हैं ! और बीमारी भी ऐसी है कि ये बताना नहीं चाहते ! ये सिर्फ चमक दिखाकर तुम्हे भी अपने जैसा बनाना चाहते हैं ! ये थकी हुयी मछलियाँ है जिन्होंने कभी छोटे ज़ार में रफ़्तार दिखाकर ये प्रमोशन पाया था, ये रफ़्तार की बात अब भी करेंगे क्योंकि इनमे सच कहने का जज्बा अब रहा नहीं ! ये थके हैं, ये रफ़्तार की बात करेंगे, बड़े जार की बात करेंगे , तुम्हे थका देंगे !

तुम्हारे जीवन की जो उर्जा थी उसे कांच की दीवारों से टकरा-टकरा कर निचोड़ देंगे ! तुम कभी जान भी न पाओगे कि क्या था रहस्य, क्या था संगीत , क्या था सौंदर्य तुम्हारे जीवन का ! और जब कभी देर-सवेर तुम्हे इसका अहसास होगा तब बहुर देर हो चुकी होगी, तुम चाह के भी कुछ नहीं कर पाओगे ! फिर तुम भी इन के जैसे रफ़्तार की बात करोगे, बड़े जार की बात करोगे ! इतने मजबूर हो जाओगे कि हार मान बैठोगे, अपने बच्चों को तुम भी इसी तरह के ज़ार में बंद कर दोगे, उसे दौड़ा -दौड़ा के थका दोगे , इस उम्मीद में कि अगली पीढी को और बड़ा ज़ार मिल जाए ! हर कोई अपने ज़ार से पस्त है , हर किसी को लग रहा ही कि दुसरे ज़ार की मछली ज्यादा खुश है ! हम ज़िंदगी भर ज़ार की बात करते हैं, नदियों का, तालाबों का , समंदर का तो अब ज़िक्र भी नहीं होता ! दादा-दादी की कहानी कि तरह नदी, तालाब और समंदर 'रियल' लगते ही नहीं !

[ उपसंहार ]
गौर करना कभी, दौर ही ऐसा है ! तुम्हे एक पल की भी फुर्सत नहीं दी जा रही कि तुम कुछ और सोच पाओ, तुम सिर्फ वही सोच रहे हो जो ये चाहते हैं ... सेक्स, ग्लैमर, अय्याशी, मस्ती, बड़ी कार, बड़ा घर, बड़े सपने, बड़े जार, रंगीन मछलियाँ ! एक और बात, उकता सब गए हैं इस सिस्टम से लेकिन सब डरे हुए हैं, थके हुए हैं ! हताश है ! अब कुलाच मार के कौन बाहर आएगा ज़ार से, समंदर की तलाश कौन करेगा ! फायदा क्या ऐसी तेज़ रफ़्तार का कि हमेशा कांच की दीवारों से टकराते रहो !

शायद, मै इस भीड़ से अलग हूँ ! मेरे दादी की कहानी में जिस समंदर, जिस नदी का ज़िक्र बार -बार हुआ है मुझे उस पर भरोसा है ! मै तलाशूँगा अपने समंदर को !

6 comments:

  1. Bahut achha Saarath bhai...kuch alag socha, bahut achha socha...mubarak baat.

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  2. Hi Saarath, very well said... bahot acha and alag likha hai..... I just found the link on Facebook. -San Uttarwar

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  3. Dear Rajneesh, I'm so glad that you commented. Your words are really encouraging.
    Dear San - Thanks a lot for your appreciation ... Will keep you updated with new posts ..

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  6. Your words are really gems Sarath uncle ....n yes I can say now that you have your own "समन्दर".....bless you n keep Shining.

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