Thursday, August 26, 2010

|| शेख , अपनी-अपनी देख ||

[1].

एक जद्दोजहद छिड़ी है बरसों से , ज़िंदगी के मायने तलाशने की ! कभी कुछ नज़र आया तो कभी नज़र से सब कुछ ओझल सा हो गया ! कई बार तो ऐसा भी लगा कि सब कुछ एक सपने जैसा ही था , और जैसे ही इस सपने के सबसे खूबसूरत हिस्से पर पहुंचे ही थे कि आँख खुल गयी ! शिकायत फिर हुई! विश्लेषण ये हुआ कि क्या वाकई आँख खुलना आँख के खुलने जैसा था या फिर असली मायने सपने में ही मिलने वाले थे ! गड़बड़ शुरू ! अब आँख खोलें तो आफ़त और आँख मूँद के एक स्वप्न की रूपरेखा रचे तो आफ़त ! ऐसी स्थिति में हम अक्सर कोमा में चले जाया करते हैं ! जिंदा, विचारशील लेकिन स्थूल और गति-विहीन ! सोचिये ज़रा ! सार यही निकला कि मन में खूब सारे विचार आयें तो आफ़त और विचार-शून्य हो जाएँ तो आफ़त ! सवाल अब भी वहीं का वहीं , ' ज़िंदगी के मायने क्या हैं' ?

"मृतकों से पटी हुई भू है , पहचान कहाँ इसमें तू है !!"

तुम्हे लगता है कि तुम जिंदा हो ? तुम्हे लगता है कि सपूर्ण जीवन तुम धरा के ऐश्वर्य भोगने की चाह में बिता ही लोगे? अभी लेह में बादल फट गए, हज़ार आदमी तबाह हुए, पाकिस्तान में बाढ़ आयी, अमेरिका ने फिर कहीं बम गिराए, अफ्रीकन देशों में लाखों लोग गृहयुद्ध की वेदी पर चढ़ गए , किसी जेहादी ने अपने साथ और भी ज़िंदगियाँ विस्फोटित कर दी ! फिर भी तुम अमरत्व की आशा लिए जिए जा रहे हो ! सोचो ज़रा, कुछ मायने भी हैं ऐसी ज़िंदगी के ?

कुछ लोग ऐसे हालातों में जंगले चले जाते हैं, एकांत खोजते हैं , नदी , पहाड़ के सिरे पर जाकर ज़िंदगी के मायने तलाशते हैं !ज़िंदगी से दूर ज़िंदगी के मायने कोई कैसे तलाशेगा भला ? जो ज़िंदगियाँ आज मेरे पास दम तोड़ रही हैं और जो कल दम तोड़ देंगी , उनका क्या ? 'ज़िंदगी के मायने ' - पता नहीं किस विद्वान् ने कस दिया ये जुमला , बवाल-ए-जाँ बन गया !

शेख , अपनी-अपनी देख !

ये आसान जुमला है ! अपनी -अपनी देखो भाई ! यहाँ अब टाइम किसके पास है ये सब सुनने का , पढने का और अमल करने का , फिर तुम कौन से नारायण के अवतार आ गए ! आना है ही उन्हें, तब कि तब देखेंगे ! तब तक अपनी-अपनी देख ! गलत नहीं हैं ऐसे लोग ! थक चुके हैं ये ऐसी बातें सुन सुनकर ! लेकिन शेख साहब , जुमला थोडा मज़ाक तो लगता है ! अपनी ज़िंदगी कोई अपनी अकेले कि थोड़े है यार ! सोचो, सबसे बड़ा हिस्सा ज़िंदगी का हम जाया कर देते हैं ज़िंदगी को दूसरे के हिसाब से जीने में ! फरमाइश पूरी करते करते अलविदा हो जाते हैं दुनिया -जहां से , शायद कुछ ही मौके आये थे जब ज़िंदगी अपने हिसाब से जी थी !

' ज़िंदगी में ज़िंदगी सचमुच है कितने फीसदी' !

शायद पूरी ज़िंदगी निकल जाए तलाश करते करते और उम्र के आखिरी मुहाने पर जब मौत दस्तक देने वाली हो तो जा के पता चले कि There is No Secret Ingredient".लेकिन सफ़र का अपना अलग ही मज़ा है | गुज़ारिश यही है कि आँख मूँद के सवाल अनदेखा न किया जाए ! बिना मायने कि ज़िंदगी भी भला कोई ज़िंदगी हुयी ? सवाल अब भी जिंदा है !!

[2].
ज़माना एयर-कंडीशंड घर और टोटली कंडीशंड इंसानों का है ! शत-प्रतिशत साक्षरता का ! तुम सब जानते हो कि साक्षरता के नाम पर कितना कंडीशंड हुए हैं हम सब , और नहीं जानते तो सोचो एक मिनट ! अब भी नहीं जाँ पाए तो सुन लो, साक्षर होकर हम सिर्फ दलाल बने हैं, अपना नया और सृजित कुछ नहीं, कमीशन खोरी कर रहे हैं और कमीशन खोरों कि ज़मात दर ज़मात पैदा कर रहे हैं ! समझे कि नहीं समझे ?

मीडिया दलाली करती है, प्रेस दलाल हैं, हमारा कोर्स मैटेरिअल भी दलाली का नतीजा है ! लिक्खाड़ पैदा हो गए गली -गली, लिखवा लो कुछ भी अंट-शंट ! कुछ नहीं तो बरसों की मान्याताओं को ही जुठला देंगे ये, opinion -making का काम अब टीवी और newspaper कर रहे हैं ! सनसनी सब कुछ है आज के ज़माने में ! सामने वाले का response आना चाहिए बॉस.. चाहे ' wow' हो या 'ohh', बस अपना काम हो गया ! अपनी दलाली पक्की है !

एक affirmative sentence को negative sentence बनाना व्याकरण का आसान सा काम है, कोई भी कर सकता है ! यहाँ लिक्खाडों की फौज तैयार है सा'ब ! दिमाग जिसे चलाना है चलाये हमने अपना काम कर दिया ! नाम , शोहरत , रुतबा, पैसा सब मिल रहा है !

एक ढर्रा चल पढ़ा, हरामखोरी की मिसाल दर मिसाल दर्ज हो रही है , एक ज़माने में 'आज-तक' को मसालेदार commercial न्यूज़ चैनल कहते थे तो आज इंडिया टीवी नयी मिसाल के साथ market में आ गया ! कल कोई नया आ जाएगा !

बचपन में एक मास्टर ने पढाया था कि एक प्रधान-मंत्री हुआ हमारे देश में जो कि एक ज़माने में रेल-मंत्री था ! एक ट्रेन दुर्घटना का शिकार हो गयी और उन्होंने नैतिक आधार पर ज़िम्मेदारी लेकर त्याग-पत्र दे दिया ! नैतिकता अब बची कहाँ ! ज़माना लालू प्रसाद और ममता बनर्जी का है ! नैतिकता का नाम लेंगे तो कॉमेडी हो जायेगी ! नैतिकता बची कहाँ !

और अगर बची भी हो तो चाहिए किसे ?

अब इन हालात में अगर एक आम आदमी अपने बच्चों को सदाचार का पाठ पढाये और रामायण- महाभारत की कहानी सुनाये तो बेवकूफी सी लगती हैं ! सफलता के जो आधुनिक मान-दंड हैं उनमे ये सब कुछ नहीं चाहिए !
थोडा डर तो लगता ही है ये सब देख कर , है कि नहीं ? हम ये चाहते हैं कि जब हम विपत्ति में फंसे हो तो सामने मदद करने ऐसा ही परोपकारी और सदाचारी मानव निस्वार्थ भाव से हमारे मदद को आये और दूसरी तरफ हम आला दर्जे के हरामी बनते जा रहे हैं !
अब शायद कुछ sense बन रहा होगा मेरे इस राग का ! पता नहीं कब ये रास्ता अख्तियार कर लिया हमारे जीने के तरीके ने !

[3].
नयी पीढी तेज़ है, दिमाग शातिर है , उर्जा और आत्म-विश्वास कूट कूट के भरा है ! इनके पास short-cuts और छोटे shorts-cuts दोनों है, ये तेज़ भागते हैं, दौड़ते हैं ! ये तेज़ दौड़ भी रहे हैं , लेकिन, हेल्लो ! जाना कहाँ है भाईसाहब? कुछ नहीं पता , यही हकीकत है ! हाय-बाय वाले लौंडे पैदा हो रहे हैं , Dude बनने के चक्कर में झूठे और मक्कार होते जा रहे हैं ! और अब ये आलम है की इस ज़मात में बहुत सारे लोग शामिल हो गए अब , ऐसे लोग जो की टीवी के सामने भी सफ़ेद झूठ बोल जाते हैं ! कोढ़ में खाज ये हैं कि इनके पास मीठे अल्फाज हैं और खुद को present करने का एक तरीका भी ! ऐसे लोग Spltizvilla और emotional Atyachar जैसे serials में youth -model बन के आ जाते हैं ! गाँव के लौंडे एकदम पागल हो गए और लड़कियाँ तो मालिक पूछो मत ! Posers पैदा हो रहे हैं ! पहले एक-दो होते थे अब घर -घर पैदा हो रहे हैं ! Posers ! खुद को काबिल दिखने और कुछ करने कि चाह में अजीब हो गए हैं ये ! जल्दबाज़ !

होता ये है कि यही Posers भाईसाहब और बहिन जी जब trek करने जाते हैं तो एक दम धाँसू trek -gears में ..Nike aur Addidas वाले gears .. उसपे टोपी, चश्मा , sunscreen, moisturiser सब कुछ original और महँगा वाला ! वैसे AC कार लेना पसंद करेंगे लेकिन मजबूरी में मुंह बनाते हुए ST बस भी ले लेंगे, base पर पहुंचे , guide लिया और पीछे -पीछे हज़ार ड्रामे करके टॉप पर भी पहुँच गए ! झंडा लगा दिया, विचित्र मुद्रा में फोटोग्राफ्स भी ले लिए और facebook में upload भी कर दिए ... सैकड़ों चिलंटू तैयार है comments को ... wow, Dude ...this is superb, I never knew u r such a superb trekker... फिर इनके कमेन्ट , man ! it was really difficult, my life was on stake ! चलो, trek हो गयी, कमेंट्स भी पा लिए लेकिन सवाल अब भी वही ... बॉस, इंसान कहाँ बना ?

एक ज्ञानी अँगरेज़ हुआ है जो खुद भी बेमिसाल trekker था , उसने कहा था , “Mountains are the means, the man is the end. The goal is not to reach the tops of mountains, but to improve the man.” (Walter Bonatti, Italian Mountaineer )

इंसान बना ही नहीं, improvements की बात बेमानी है ! सिर्फ एक नंबर बढ़ा इनकी 'no's of treks' में |अब ये ट्रेंड बन गया है ! numbers ही सब कुछ हो गए अब ! तुमने २० trek की मैंने ६० सो मै Superior हो गया ! 'quality of trek' जैसी कोई चीज ही नहीं होती ! या यूं कहे quality जैसी चीज के कोई मायने ही नहीं रहे अब ! quality is subjective often ! जो कुछ भी सब्जेक्टिव है उसने अपना मूल्य खो दिया ! संस्कार, पौरुष, धर्म और आचरण सब कुछ अस्तित्व-विहीन हो गया Posers की इस दुनिया में ! numbers बताओ बॉस numbers ! बैंक बैलेंस, cars, फ्लेट्स, LED's measurement, per Sq feet cost of Flooring tiles ..numbers यहीं है ...कामयाबी का असली मानदंड भी यही है !
...............................
.

वैसे मै कोई दूध का धुला नहीं हूँ, मै खुद से भी उतना नाराज़ हूँ जितना की बाकी लोगों से !!
बस, बाकी गुस्सा अगली बार !!

6 comments:

  1. अच्छा लिखा है धन्यवाद्|

    ReplyDelete
  2. शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  3. Your writting seems to be inspired by Osho.. excellant mix of emotions and sober way of communicating your message.

    ReplyDelete
  4. @ Rajneesh - yes sir, I'm truly inspired by the master... he has infested me ..but yes, I mean whatever I write ...truly dil se...

    ReplyDelete
  5. Your thinking ........very expensive and branded...........but shyd jis trh logo ki thinking h they can't afford ur thought!!!!!

    Sun to SB skte but kuch krne ka jazba aaj b kisi m ni.......!!!!!

    ReplyDelete
  6. Your thinking ........very expensive and branded...........but shyd jis trh logo ki thinking h they can't afford ur thought!!!!!

    Sun to SB skte but kuch krne ka jazba aaj b kisi m ni.......!!!!!

    ReplyDelete